स्मार्ट हाइब्रिड टेक्नोलॉजी मारुति सुजुकी की एक माइल्ड-हाइब्रिड सिस्टम है, जिसे ईंधन की बचत और परफॉर्मेंस सुधारने के लिए डिजाइन किया गया है। यह टेक्नोलॉजी पारंपरिक इंजन के साथ एक इंटीग्रेटेड स्टार्टर जनरेटर (ISG) और लिथियम-आयन बैटरी का इस्तेमाल करती है। कैसे काम करती है स्मार्ट हाइब्रिड टेक्नोलॉजी? 1. इंजन स्टार्ट-स्टॉप फ़ीचर – जब गाड़ी ट्रैफिक में रुकती है, तो इंजन ऑटोमैटिकली बंद हो जाता है और एक्सीलेटर दबाने पर तुरंत स्टार्ट हो जाता है। इससे ईंधन की बचत होती है। 2. रीजनरेटिव ब्रेकिंग – जब गाड़ी ब्रेक लगाती है या धीमी होती है, तो सिस्टम उस ऊर्जा को बैटरी में स्टोर कर लेता है, जिससे इंजन पर लोड कम होता है। 3. टॉर्क असिस्ट – एक्सीलेरेशन के दौरान बैटरी से अतिरिक्त टॉर्क मिलता है, जिससे इंजन की परफॉर्मेंस बेहतर होती है और फ्यूल एफिशिएंसी बढ़ती है। स्मार्ट हाइब्रिड के फायदे बेहतर माइलेज – पारंपरिक पेट्रोल इंजन की तुलना में अधिक फ्यूल एफिशिएंसी। कम कार्बन उत्सर्जन – प्रदूषण कम करने में मदद करता है। स्मूथ ड्राइविंग एक्सपीरियंस – स्टार्ट-स्टॉप टेक्नोलॉजी के कारण कम वाइब्रेशन और बेहतर परफॉर्मे...
Swami Vivekanand : Do You Know
स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी सन 1863 को हुआ था।
पिता का नाम - विश्वनाथ दत्त
माता का नाम - भुवनेश्वरी देवी
बचपन का नाम - नरेंद्र
गुरु का नाम - रामकृष्ण परमहंस
स्वामी विवेकानंद ने बचपन में ही रामायण एवं महाभारत के भजन और प्रसन्न कंठस्थ कर लिए थे। इनके घर का माहौल अत्यंत धार्मिक था। यह बचपन में ही शांत होकर रामायण और महाभारत की कहानियां सुनते थे ।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। इसके बाद उन्होंने बीए की शिक्षा ली। स्वामी विवेकानंद का आध्यात्मिकता में जन्म से रुझान था। जिससे उनमें सत्य को जानने की इच्छा जागने लगी।
वे लोगों से हमेशा पूछते थे कि " क्या ईश्वर का अस्तित्व है " इस समाधान के लिए अनेक व्यक्तियों से मिले मगर उन्हें हमेशा निराशा हाथ लगी । इस दौरान उन्हें पता चला कि उनके यहां एक संत आए हुए हैं। स्वामी विवेकानंद अपने स्वभाव के की तरह उस साधु से वही प्रश्न किया " महानुभाव क्या आपने ईश्वर को देखा है। "
उस महर्षि ने उत्तर दिया " हां मैंने देखा है, ऐसे ही जैसे तुम्हें देख रहा हूं, बल्कि तुमसे भी अधिक स्पष्ट और प्रगाढ़ रूप में। "
पहली बार उन्हें एक ऐसा जवाब मिला जिसे सुनकर उन्हें लगा कि कोई तो है जो ईश्वर के अस्तित्व मैं विश्वास करता है। और साधु का नाम और कोई नहीं रामकृष्ण परमहंस था।
स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बन गए। रामकृष्ण परमहंस ने अपनी समाधि से पूर्व सारी शक्तियां उन्हें दे दी।
उनकी मृत्यु के पश्चात स्वामी विवेकानंद ने मठ छोड़कर संपूर्ण भारत में उनके उपदेशों को फैलाने लगे। लोगों के सुख-दुख बांटने लगे।
सन 1893 ईसवी में शिकागो में संपूर्ण विश्व के धर्माचार्य का सम्मेलन तय हुआ था। जब उन्हें पता चला तो वह भी सम्मिलित होने के लिए वहां पहुंच गए। स्वामी विवेकानंद को अमेरिका में कोई जानता नहीं था। इसलिए उन्हें बोलने के लिए सबसे आखिरी में बुलाया गया था।
स्वामी विवेकानंद ने आत्मकथा में कहते हैं कि मैं मूर्ख व्यक्ति था जो बिना किसी तैयारी के चला गया जहां बाकी धर्मगुरु अपनी भाषण लिख कर लाए थे वही मैं बिना किसी तैयारी के।
शुरुआत में सभी धर्म गुरुओं ने कहा " अमेरिका वासी महिलाओं एवं पुरुषों " , जिसके स्थान स्वामी विवेकानंद ने कहा " अमेरिका वासी बहनों और भाइयों " । जिससे वहां मौजूद लोगों ने तालियां बजाना शुरू कर दिया । जहां पर सभी धर्म गुरुओं ने अपने अपने धर्म को महान बताया। वही स्वामी विवेकानंद ने कहा " लड़ो नहीं साथ चलो । खंडन नहीं, मिलो । विग्रह नहीं, समन्वय और शांति के पथ पर बढ़ो । "
विवेकानंद के इस भाषण के बाद वहां की मीडिया जैसे दैनिक हेराल्ड, प्रेस आफ अमेरिका ने उनके भाषण को सर्वश्रेष्ठ बताया। इस भाषण के बाद, उनकी भाषण वाद विवादों के लिए बुलावा आने लगा।
विवेकानंद का मानना था कि भारतवंशी भले ही अपनी संस्कृति का आदर न करें, मगर पश्चिम के लोग जरूर उससे प्रभावित हो सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद के विचारधाराओं को फैलाने में जेजे गुडविन, सेवियर दंपति और मार्गरेट नोवल आगे रहे। मार्गरेट नोवल को ही भगिनी निवेदिता कहा गया ।
स्वामी विवेकानंद ने 1897 ईस्वी में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसका उद्देश्य सर्वधर्म समभाव था।
स्वामी जी प्रचार प्रसार में इतने व्यस्त हो गए कि उनके स्वास्थ्य पर धीरे-धीरे असर पड़ने लगा। उन्हीं दिनों कोलकाता सहित पूरे विश्व में प्लेग जैसी बीमारी फैल चुकी थी । जिससे वे लोगों की मदद करने को व्याकुल हो गया। उन्होंने विभिन्न तरीकों से लोगों की मदद करने की कोशिश की।
प्रारंभ के भांति एक दिन ( 4 जुलाई 1902 ) वे सुबह उठकर पूजा अर्चना की, शिष्यों को संस्कृत पढ़ाया, फिर शाम को आरती करने के बाद भी अपने कमरे में गए। और भी महासमाधि में चले गए।
उनके कुछ वाक्य :
- जो भूख से तड़प रहा हूं उसके आगे दर्शन और धर्म ग्रंथ परोसना उसका मजाक उड़ाना है।
- जब पड़ोसी भूखा मरता है तो मंदिर में भोग लगाना पुण्य नहीं पाप है। वास्तविक पुजा निर्धन और दरिद्र की पूजा है, रोगी और कमजोर की पूजा है।
- जो जाति नारी का सम्मान करना नहीं जानती हो वह न तो अतीत में उन्नति कर सकी, न आगे कर सकेगी।
- शरीर तो एक दिन जाना ही है फिर आलसियों की भांति क्यों जिया जाए। जंग लड़कर मरने की अपेक्षा कुछ कर के मरना अच्छा है। उठो जागो और अपने अंतिम लक्ष्य की पूर्ति है तो कर्म में लग जाओ।
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